Monday, 5 August 2019

370 की संपत्ति


जम्मू & कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A का हटना बेशक एक ऐतिहासिक और साहसिक फैसला है लेकिन मेरा मानना ये है कि सारे नियम कानून ठीक, बस वहा संपत्ति खरीदने पर रोक लागू रहनी चाहिए। क्योंकि, इतिहास और हालात गवाह है कि इंसान जहां भी गया है उसने गंद ही मचाई है।
  अंधाधुंध विकास के नाम पर पर्यावरण और प्रकृति का जो  मज़ाक हमने बनाया है वो किसी से छिपा थोड़े न है। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख भौगोलिक दृष्टि से बेहद ही खास स्थान है। यूंही इसे भारत का स्वर्ग नही कहा जाता। ज़रा कल्पना करो उस दृश्य की जब वहां लगी फैक्ट्री के धुंए और केमिकल से घाटी की नदियां और पर्वतो को वही हाल हो रहा होगा जो आज बाकी राज्य की नदियों और हवा का है।
   संपत्ति के कानून हटने का सबसे बड़ा नुकसान अगर किसी को है तो वो पर्यावरण ही है। कल अगर नदी पहाड़ जंगल को हटाकर वहा कंकरीट के जंगल खड़े हो जाए तो आश्चर्य मत करना क्योंकि ये हमारे लिए नया थोड़ी ना है। जहां जहां हम गए है हमने खुराफात ही मचाई है।
   ऐतिहासिक स्थलों पर प्यार के इज़हार, समुद्र में प्लास्टिक का त्याग, अंधविश्वास के नाम पर नदियों को कूड़ेदान, धुएं से गैस का चैंबर, अंधाधुंध विकास के नाम पर जंगलों का सफाया और ना जाने कैसे कैसे दुख हमने इस प्रकृति को दिए है, और फिर जब जब प्रकृति ने बदला लिया है.. सब जानते है।
   खैर उम्मीद है कि सरकार ने इस कानून पर भी कुछ सोचा होगा। वरना एक साथ खेत में छोड़े गए पशु भी खेत का क्या हाल करते है सबको पता है। पूरा देश, और खासकर रियल एस्टेट कारोबारी इस स्वर्ग को नर्क बनाने में देरी नहीं करेंगे अगर इस पर भी सही ढंग से कार्य नही किया गया तो। बाकी, बड़ा अच्छा लगेगा जब इस बार 15 अगस्त पर लाल चौक पर शान से तिरंगा फहराएंगे, घरो से अफ़ज़ल नही औरंगज़ेब पैदा होंगे, हाथ में पत्थर नहीं स्किल्स होंगे,  संगठनों की जगह कॉलेज होंगे, बस यही बात सोचने पे मजबूर करती है अगर हर कोई वहां प्लॉट ले लेगा तो क्या कश्मीर, कश्मीर रहेगा ? 

Saturday, 4 May 2019

Nature : On sale

हम सब जानते हैं कि हम वैश्वीकरण (Globalisation) के दौर में जी रहे हैं। अब कम्युनिकेशन और मार्केटिंग ग्लोबल लेवल पर हो रही है। बाजारीकरण (Marketization) उस स्तर पर पहुंच चुका है कि कोई भी चीज ऑनलाइन ऑफलाइन बड़ी आसानी से खरीदी जा सकती हैं। लेकिन, यह बाजारीकरण तब तक बहुत अच्छी चीज थी जब तक सिर्फ इंसान द्वारा बनाई गई चीजें ही इसके दायरे में थी। ख़ैर हालात तो उसी दिन से खराब होने शुरू हो गए थे जिस दिन से हेल्थ और एजुकेशन जैसी बेसिक ज़रूरतों का भी व्यवसायिकरण (Commercialization) शुरू हो गया था। लेकिन, आने वाला दौर शायद इससे कहीं ज्यादा बदतर होगा, क्योंकि अब इस व्यवसायीकरण की चपेट में हवा और पानी भी आ चुके हैं। मतलब अब शिक्षा और स्वास्थ्य के बाद पर्यावरण का भी व्यवसायीकरण हो चुका है। कैसे ? 
                     यूं तो प्राचीन काल से ही भारत नदी-नहरों का देश रहा है जिसकी वजह से यहां पर खेती-बाड़ी बड़े पैमाने पर चलती आ रही है और यही वजह है कि भारत कृषि प्रधान देश कहलाया है। लेकिन समय दर समय, अलग-अलग कारणों से ये नदियां प्रदूषित होती चली गई और साथ ही साथ कमी होती चली गई साफ पीने योग्य पानी की। अभी भी देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो स्वच्छ पानी से कोसो दूर है। यह भी एक विडंबना ही है कि हमें उस ग्रह पर पानी की कमी है जिस ग्रह के 71% हिस्से पर पानी है।
                   वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि भारत में 21% कम्युनिकेबल रोग प्रदूषित जल और साफ सफाई की कमी से जुड़े हैं। इसके अलावा, पाँच वर्ष से कम आयु के 500 से अधिक बच्चे अकेले भारत में दस्त से मरते हैं। कुछ साल पहले इसी तरह के आंकड़े जब सामने आए तो साफ पानी एक राजनीतिक मुद्दा बन गया। संसद में चर्चाएं चली, टीवी पर डिबेट्स हुई, अखबारों में लेख छपे और न जाने क्या-क्या हुआ।
इन सबसे साफ पानी तो नहीं मिला लेकिन बाजार चलाने वाले कुछ लोगों को मार्केट चलाने का नया आईडिया जरूर मिल गया और मार्केट में आई वाटर फिल्टर मशीन, आर.ओ. (R.O.) और प्लास्टिक की फिल्टर्ड पानी की बोतलें। साफ पानी का ऐसा व्यवसायीकरण हुआ कि ये  मुद्दा ही कहीं बह गया। आज हालात यह है कि अब साफ पानी का मुद्दा मुद्दा ही नहीं रहा।
            ठीक ऐसा ही अब साफ हवा के साथ हो रहा है। पिछले 2 सालों में देश के ज्यादातर शहर गैस के चेंबर में तब्दील हो गई थे। दिल्ली जैसे राजधानी शहर में तो हवा सामान्य स्तर से 3 गुना ज्यादा प्रदूषित थी। अब क्योंकि यह मुद्दा नया था तो फिर से वही हुआ जो साफ पानी के लिए हुए था, वही चर्चाएं हुई, डिबेट्स, वही लेख- आलेख, वहीं गली नुक्कड़ पर लोगों की अपनी-अपनी राय। और एक चीज फिर से वही हुई, इन चर्चाओं और डिबेट ने मार्केट चलाने वालों को इस बार भी एक नया आईडिया दे दिया और मार्केट में आई एयर प्यूरीफायर मशीनें।
मतलब बिल्कुल साफ है कि साफ पानी के बाद अब साफ हवा का व्यवसायीकरण हो चुका है। तो हो सकता है कि अगली बार शुद्ध हवा का ये मुद्दा, मुद्दा ही ना हो। चौंकना मत अगर कुछ सालों बाद साफ पानी की तरह शुद्ध हवा भी आपको पैकेट में खरीदनी पड़े तो। 
                            चुनाव जीतकर सत्ता में आने के बाद हजारों लाखों रुपए देने की घोषणा तो बहुत सी राजनीतिक पार्टिया कर रही है लेकिन, क्या कोई ऐसी पार्टी भी मेरे देश में है जिनके घोषणा पत्र में पर्यावरण जैसा अहम मुद्दा प्राथमिक स्तर (Primary level) पर शामिल है ? 

Wednesday, 3 April 2019

DC: नेम बदला, गेम बदला

"बिगुल बज चुका है, सेज सज चुकी है और शुरू हो चुका है  क्रिकेट का सबसे बड़ा महोत्सव।"
जो लोग इस लाइन को पढ़ते ही समझ गए कि यहां आईपीएल की बात होने वाली है, तो सिर्फ वो ही समझ सकते है कि अगले डेढ़ - दो महीने हम क्रिकेट फैंस के लिए कैसे होने वाले है।
ख़ैर, हर आईपीएल फैन की तरह मेरी भी अपनी एक फेवरेट टीम है, दिल्ली कैपिटल्स (पहले Daredevils), और दिल्ली की टीम से ये लगाव कोई साल दो साल का नहीं, पूरे बारह सालों का है। मतलब 2008 में पहले सीज़न से ही दिल्ली फेवरेट रही है जब दिल्ली केपिटल्स नहीं हुआ Daredevils हुआ करती थी और  इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ एक शख़्स था - वीरेंद्र सहवाग।
Courtsey- https://www.cricketcountry.com
ये बदकिस्मत ही है कि सहवाग, पीटरसन, गंभीर, वार्नर, दिलशान,  डिविलियर्स, मैक्सवेल, रसेल, जेसन रॉय, सैमुएल्स, कोरी एंडरसन, अजित अगरकर, युवराज, ताहिर, रॉस टेलर, विटोरी, कोलिंगवुड, डिकॉक, डुमिनी, फिंच, ज़हीर, शोएब मलिक, जयवर्धने, मैक्ग्राथ, अमित मिश्रा, मॉर्केल बंधु, नेहरा, इरफान पठान जैसे स्टार खिलाड़ियों के साथ खेलने के बावजूद भी (अलग अलग समय में) दिल्ली कभी फाइनल तक भी नहीं पहुंच पाई। यही बात दिल्ली के फैंस को सबसे ज्यादा कचोटती है।
Naidunia.com

 लेकिन इस बार दिल्ली ने ना सिर्फ नेम बदला है बल्कि अपना गेम भी बदला है। अगर किंग्स XI punjab के साथ हुए पहले मैच को छोड़ दे तो सभी मैचों में दिल्ली ने प्रभावित किया है। टीम में ज्यादातर खिलाड़ी युवा है लेकिन, ये युवा खिलाड़ी किसी भी समय अकेले दम पर मैच अपने पाले में पलटने की क्षमता रखते है।
Courtsey- CricTracker.com
  एक फैन के नाते हम हर साल की तुलना में इस साल दिल्ली से ज्यादा उम्मीद लगाए हुए है और इसकी वजह कोई बड़े नाम वाले स्टार नहीं बल्कि पंत, शॉ, अय्यर, रबादा, संदीप, जैसे युवा खिलाड़ी है। 

370 की संपत्ति

जम्मू & कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A का हटना बेशक एक ऐतिहासिक और साहसिक फैसला है लेकिन मेरा मानना ये है कि सारे नियम कानून ठीक, बस ...