हमारे देश में हर आए दिन हड़ताल, चक्का जाम,
बंद, विरोध-प्रदर्शन आदि चलते ही रहते है। इन सबकी वजह से जितना नुकसान होता है,
वो वाकई में दुखद है। मैं बिल्कुल भी इस बात के समर्थन में नहीं हूं कि कोई आपका
हक मारता रहे और आप चुपचाप बैठे रहे, और वो भी तब जब आप विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र में रह रहे हो। लेकिन सिस्टम तक अपनी बात पहुंचाने के लिए, क्या बंद और
हड़ताल ही सिर्फ एकमात्र रास्ता है ?
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Pic Credit- The Indian Express |
मैंने बचपन में किसी
पुस्तक में सत्य घटना पर एक कहानी पढ़ी थी जो आज तक मेरे जेहन में जिंदा है। कहानी
का सार ये है कि ‘एक विकसित देश (नाम
याद नही) की जूता बनाने वाली एक बड़ी कंपनी के कर्मचारी किसी कारणवश हड़ताल पर चले
गए। उनकी हड़ताल ऐसी नही थी जैसी हड़ताले देखने के हम आदी है जिसमें सारे काम-धंधे
ठप्प कर दिए जाते है बल्कि उन कर्मचारियों ने मालिक तक अपनी बात पहुंचाने एक अनूठा
रास्ता निकाला। उन लोगो ने दो के बजाए एक ही पैर का जूता बनाना शुरू कर दिया और इसका
असर ये हुआ कि बोहोत ही जल्द मालिक तक उनकी बात पहुंची और आखिरकार कर्मचारियों की
समस्या का समाधान बिना किसी नुकसान के शांतिपूर्वक हो गया। मतलब काम भी चलता रहा
और काम भी बन गया।
हर बार हमारे हड़ताल, चक्का जाम, बंद,
विरोध-प्रदर्शन इत्यादि की वजह से देश और अर्थव्यवस्था को अरबों-खरबों का नुकसान
झेलना पड़ता है। हाल ही में हुए सिर्फ एक दिन के बंद से देश के उत्पादन, शेयर बाजार, रियल एस्टेट सेक्टर, मॉल से लेकर छोटे
किराना स्टोर की बिक्री, सरकारी से लेकर निजी
क्षेत्र के दफ्तरों में कामकाज समेत टूरिज्म, बैंकिंग और ट्रांसपोर्टेशन (रेल, हवाई सफर, सड़क इत्यादी) जैसे अनेक क्षेत्र के
नुकसान का आंकड़ा 20 से 25 हजार करोड़ का था। इस घटना से सीख लेते हुए
क्यूं ना हम भी अपने विरोध का कोई ऐसा रास्ता चुनें जिसमें सांप भी मर जाए और लाठी
भी ना टूटे।
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यहां की सरकारें न तो वैसी है ना लोग न तो सरकार अपना काम करती है और न ही लोग अपनी ज़िम्मेदारी समझते है भईया
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