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पर्यावरण में विनाशकारी बदलाव लगातार जारी है। हमनें
प्रकृति के साथ इतना दुर्व्यवहार किया है और कर रहे है कि अब प्रकृति में बदले की
ज्वाला ज्वालामुखी बनती जा रही है। इसी बात को और पुख्ता कर रही है संयुक्त
राष्ट्र के इंटर गवर्नेंट पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (INCC) की रिपोर्ट। ये
रिपोर्ट कह रही है कि जिस गति से दुनिया में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, 2030 तक वैश्विक
ताप (Global Warming) में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक की
बढोत्तरी हो जाएगी। 2 डिग्री की बढोत्तरी सुनने में शायद सामान्य लगे लेकिन
रिपोर्ट के अनुसार मानव जाति और जंतु-प्रजाति के सर्वनाश के लिए ये काफी है।
गर्मीं और ज्यादा बढेगी औऱ गर्मियों के दिन भी। 30-40 करोड़ शहरी जनसंख्या सूखे की
मार झेलेगी और पानी की बूंद-बूंद को तरसेगी। ग्लेशियरों की बर्फ पिघलेगी तो
समुद्री क्षेत्रों को भयानक बाढों का सामना भी करना पडेगा। जब कल्पना ही इतनी
भयानक हो तो सोचिए सच....
अब सवाल ये है कि इसका जिम्मेदार कौन है? बेशक हम। हम हर
बात के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराने के आदी है। कभी खुद सोचा है कि पर्यावरण और
समाज के लिए आजतक हमनें क्या किया है? विडंबना तो ये है कि हर आधे मिनट में
गुटखा थूकने वाला भी सरकार के स्वच्छता कार्यक्रम को नाकामयाब बताता है। घर की छत
से ही गली में कूड़ा फेंकने वाली आंटी कहती है कि “गंदगी बढ़
रही है और सरकार को कोई फिक्र ही नही।” कार और AC में पूरा दिन गुजारने वाले ग्लोबल वार्मिंग पर
जनता को जागरूकता का ज्ञान बांटते फिर रहे है। निर्माण कार्यो की राह में पेडो को
कांटकर उनके बदले दुगने पेड़ लगाए तो जाते है लेकिन, देखभाल के अभाव में उनमें से पनपते
कितने है, ये सबको पता है।
रिपोर्ट का कहना है कि इस भयानक भविष्य से बचने का उपाय है कि हम जितना कार्बन वातावरण में छोड़ रहें है उसको नियंत्रित किया जाए। इन
सब हालातों की वजह हम है, तो इनका समाधाम भी हम ही है। हालात को समझते हुए अगर अब
भी कुछ नहीं किया तो प्रकृति दूसरा मौका नही देगी। किसी को पेड़ काटने, प्रदूषण फैलाने,
गंदगी करने, पानी बर्बाद करने से रोको तो बोलता है कि “हमारे थोड़े
से पानी बचाने से क्या हो जाएगा?” ऐसे लोगो को मैं सिर्फ एक ही बात बोलता
हूं - “अगर बूंद-बूंद से घड़ा भरता है तो बूंद-बूंद से खाली भी होता है।“
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