Monday, 22 October 2018

नेताजी-सरदारजी: Forgotten Heroes

इन दिनो देश की आज़ादी के वो दो नायक सुर्ख़ियो में है, जिन्हें हम भूल चुके है क्योंकि इतिहास की किताबों में भी उन्हें वो जगह नही मिली जिसके वो हक़दार थे। ये दो नायक है नेताजी सुभाष चंद्र बोस और सरदार बल्लभ भाई पटेल।
   
  अगर आप कहोगे कि 200 साल बाद अंग्रेज़ सिर्फ़ अहिंसा बल पर देश छोड़ने को मजबूर हुए थे, तो हमें बुरा लगेगा क्योंकि ऐसा कहकर आप भगत सिंह, चंद्रशेखर, अशफ़ाकउल्ला खां और लालाजी जैसे सभी वीरों के बलिदान का अपमान कर रहे हो। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एक तरफ़ अंग्रेजो की सैन्य क्षमता प्रभावित हो रही थी और उसी समय नवम्बर 1943 में आज़ाद हिन्द फ़ौज ने अंडमान-निकोबार को आज़ाद कर वहाँ तिरंगा फहराकर अंग्रेजो के पैर उखाड़ दिए थे।
      देश आज़ाद तोहुआ लेकिन अंग्रेजो की चाल और जिन्ना की सनकी ज़िद ने देश के दो टुकड़े भी कर दिए। विभाजन की त्रासदी इतनी भयंकर थी कि सुनकर ही रूह काँप उठती है।
   
  देश आज़ाद होने के बाद भी 565 छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा हुआ था जिन्हें सरदार बल्लभ भाई पटेल ने अपनी साहसिक कूटनीति के बल पर भारत में मिलाया। आज अगर दुनिया में हमारे देश की पहचान 'अखंड भारत', 'प्राचीन सांस्कृतिक राष्ट्र' और 'अनेकता में एकता' आदि नामों से है तो उसका श्रेय सरदारजी को जाता है। सब जानते है, अगर ये रियासतें देश में ना मिलती तो आज हमारा देश विश्व के मानचित्र पर शायद श्रीलंका और भूटान जैसा दिखाई पड़ता।
      क्या इतिहास में इन हीरोज़ को उतनी जगह मिली जितनी के ये हक़दार हैं?
जब नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी तक भारत रत्न बन चुके है तो फिर नेताजी जैसी शख़्सियत अभी तक क्यूँ नही ?
हम क्यूँ ना कहे की पुरानी सरकारों ने इन्हें अनदेखा किया है ? 

Tuesday, 9 October 2018

हम जिम्मेदार !


Pic Credit - Effects | Facts 
पर्यावरण में विनाशकारी बदलाव लगातार जारी है। हमनें प्रकृति के साथ इतना दुर्व्यवहार किया है और कर रहे है कि अब प्रकृति में बदले की ज्वाला ज्वालामुखी बनती जा रही है। इसी बात को और पुख्ता कर रही है संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नेंट पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (INCC) की रिपोर्ट। ये रिपोर्ट कह रही है कि जिस गति से दुनिया में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, 2030 तक वैश्विक ताप (Global Warming) में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक की बढोत्तरी हो जाएगी। 2 डिग्री की बढोत्तरी सुनने में शायद सामान्य लगे लेकिन रिपोर्ट के अनुसार मानव जाति और जंतु-प्रजाति के सर्वनाश के लिए ये काफी है। गर्मीं और ज्यादा बढेगी औऱ गर्मियों के दिन भी। 30-40 करोड़ शहरी जनसंख्या सूखे की मार झेलेगी और पानी की बूंद-बूंद को तरसेगी। ग्लेशियरों की बर्फ पिघलेगी तो समुद्री क्षेत्रों को भयानक बाढों का सामना भी करना पडेगा। जब कल्पना ही इतनी भयानक हो तो सोचिए सच....
          अब सवाल ये है कि इसका जिम्मेदार कौन है? बेशक हम। हम हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराने के आदी है। कभी खुद सोचा है कि पर्यावरण और समाज के लिए आजतक हमनें क्या किया है? विडंबना तो ये है कि हर आधे मिनट में गुटखा थूकने वाला भी सरकार के स्वच्छता कार्यक्रम को नाकामयाब बताता है। घर की छत से ही गली में कूड़ा फेंकने वाली आंटी कहती है कि गंदगी बढ़ रही है और सरकार को कोई फिक्र ही नही। कार और AC  में पूरा दिन गुजारने वाले ग्लोबल वार्मिंग पर जनता को जागरूकता का ज्ञान बांटते फिर रहे है। निर्माण कार्यो की राह में पेडो को कांटकर उनके बदले दुगने पेड़ लगाए तो जाते है लेकिन, देखभाल के अभाव में उनमें से पनपते कितने है, ये सबको पता है।

       रिपोर्ट का कहना है कि इस भयानक भविष्य से बचने का उपाय है कि हम जितना कार्बन वातावरण में छोड़ रहें है उसको नियंत्रित किया जाए। इन सब हालातों की वजह हम है, तो इनका समाधाम भी हम ही है। हालात को समझते हुए अगर अब भी कुछ नहीं किया तो प्रकृति दूसरा मौका नही देगी। किसी को पेड़ काटने, प्रदूषण फैलाने, गंदगी करने, पानी बर्बाद करने से रोको तो बोलता है कि हमारे थोड़े से पानी बचाने से क्या हो जाएगा?” ऐसे लोगो को मैं सिर्फ एक ही बात बोलता हूं - “अगर बूंद-बूंद से घड़ा भरता है तो बूंद-बूंद से खाली भी होता है।

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Saturday, 6 October 2018

हड़ताल: क्या एकमात्र रास्ता ?

                                

    हमारे देश में हर आए दिन हड़ताल, चक्का जाम, बंद, विरोध-प्रदर्शन आदि चलते ही रहते है। इन सबकी वजह से जितना नुकसान होता है, वो वाकई में दुखद है। मैं बिल्कुल भी इस बात के समर्थन में नहीं हूं कि कोई आपका हक मारता रहे और आप चुपचाप बैठे रहे, और वो भी तब जब आप विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र में रह रहे हो। लेकिन सिस्टम तक अपनी बात पहुंचाने के लिए, क्या बंद और हड़ताल ही सिर्फ एकमात्र रास्ता है ?

Pic Credit- The Indian Express
    एक तरफ पीएम मोदी का स्वच्छ भारत अभियान देश-विदेश में तारीफें लूट रहा है, वहीं दूसरी तरफ देश की राजधानी दिल्ली कूड़े के ढेर में तब्दील हो चुकी है। पिछले 24-25 दिनों से दिल्ली नगर निगम के कर्मचारी लगातार हड़ताल पर है। इस हड़ताल का असर सरकार पर पड़े ना पड़े लेकिन, लोगो की सेहत पर जरूर पड़ रहा है। खासकर पूर्वी दिल्ली का आंखो देखा हाल इतना बदतर है कि शाहदरा और शास्त्री पार्क क्षेत्र में हर गली-नुक्कड़ पर कूड़े का ढेर पड़े-पड़े सड़ रहा है। नालियां ठप्प हो चुकी है, नालियों का पानी गलियों में बह रहा है और बाकी बची कसर बारिश की कुछ बूंदे कर देती है। आलम ये है कि गंदगी की उस दुर्गंध में रहना तो दूर, आप उसके पास से गुजरने में भी कतराएंगे। स्थानीय लोगो का कहना है कि गंदगी से बीमारी के मामले भी सामने आने लगे है। MCD कर्मचारियों ने तब तक काम पर नही आने की बात कही है, जब तक की उनकी मांगे नही मान ली जाती। वहीं, केन्द्र और राज्य सरकार के बीच दिल्ली के इस हाल के लिए एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है।इससे भी बुरा मंजर राजस्थान का है जहां पूरा प्रदेश ही बंद है। राजस्थान में रोड़वेजकर्मियों से लेकर नर्सेज़ और फार्मासिस्ट से लेकर मंत्रालयिक कर्मचारी हड़ताल पर है।

मैंने बचपन में किसी पुस्तक में सत्य घटना पर एक कहानी पढ़ी थी जो आज तक मेरे जेहन में जिंदा है। कहानी का सार ये है कि एक विकसित देश (नाम याद नही) की जूता बनाने वाली एक बड़ी कंपनी के कर्मचारी किसी कारणवश हड़ताल पर चले गए। उनकी हड़ताल ऐसी नही थी जैसी हड़ताले देखने के हम आदी है जिसमें सारे काम-धंधे ठप्प कर दिए जाते है बल्कि उन कर्मचारियों ने मालिक तक अपनी बात पहुंचाने एक अनूठा रास्ता निकाला। उन लोगो ने दो के बजाए एक ही पैर का जूता बनाना शुरू कर दिया और इसका असर ये हुआ कि बोहोत ही जल्द मालिक तक उनकी बात पहुंची और आखिरकार कर्मचारियों की समस्या का समाधान बिना किसी नुकसान के शांतिपूर्वक हो गया। मतलब काम भी चलता रहा और काम भी बन गया।   

     हर बार हमारे हड़ताल, चक्का जाम, बंद, विरोध-प्रदर्शन इत्यादि की वजह से देश और अर्थव्यवस्था को अरबों-खरबों का नुकसान झेलना पड़ता है। हाल ही में हुए सिर्फ एक दिन के बंद से देश के उत्पादन, शेयर बाजार, रियल एस्टेट सेक्टर, मॉल से लेकर छोटे किराना स्टोर की बिक्री, सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र के दफ्तरों में कामकाज समेत टूरिज्म, बैंकिंग और ट्रांसपोर्टेशन (रेल, हवाई सफर, सड़क इत्यादी) जैसे अनेक क्षेत्र के नुकसान का आंकड़ा 20 से 25 हजार करोड़ का था।  इस घटना से सीख लेते हुए क्यूं ना हम भी अपने विरोध का कोई ऐसा रास्ता चुनें जिसमें सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। 

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370 की संपत्ति

जम्मू & कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A का हटना बेशक एक ऐतिहासिक और साहसिक फैसला है लेकिन मेरा मानना ये है कि सारे नियम कानून ठीक, बस ...