"बिगुल बज चुका है, सेज सज चुकी है और शुरू हो चुका है क्रिकेट का सबसे बड़ा महोत्सव।"
जो लोग इस लाइन को पढ़ते ही समझ गए कि यहां आईपीएल की बात होने वाली है, तो सिर्फ वो ही समझ सकते है कि अगले डेढ़ - दो महीने हम क्रिकेट फैंस के लिए कैसे होने वाले है।
ख़ैर, हर आईपीएल फैन की तरह मेरी भी अपनी एक फेवरेट टीम है, दिल्ली कैपिटल्स (पहले Daredevils), और दिल्ली की टीम से ये लगाव कोई साल दो साल का नहीं, पूरे बारह सालों का है। मतलब 2008 में पहले सीज़न से ही दिल्ली फेवरेट रही है जब दिल्ली केपिटल्स नहीं हुआ Daredevils हुआ करती थी और इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ एक शख़्स था - वीरेंद्र सहवाग।
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ये बदकिस्मत ही है कि सहवाग, पीटरसन, गंभीर, वार्नर, दिलशान, डिविलियर्स, मैक्सवेल, रसेल, जेसन रॉय, सैमुएल्स, कोरी एंडरसन, अजित अगरकर, युवराज, ताहिर, रॉस टेलर, विटोरी, कोलिंगवुड, डिकॉक, डुमिनी, फिंच, ज़हीर, शोएब मलिक, जयवर्धने, मैक्ग्राथ, अमित मिश्रा, मॉर्केल बंधु, नेहरा, इरफान पठान जैसे स्टार खिलाड़ियों के साथ खेलने के बावजूद भी (अलग अलग समय में) दिल्ली कभी फाइनल तक भी नहीं पहुंच पाई। यही बात दिल्ली के फैंस को सबसे ज्यादा कचोटती है।
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लेकिन इस बार दिल्ली ने ना सिर्फ नेम बदला है बल्कि अपना गेम भी बदला है। अगर किंग्स XI punjab के साथ हुए पहले मैच को छोड़ दे तो सभी मैचों में दिल्ली ने प्रभावित किया है। टीम में ज्यादातर खिलाड़ी युवा है लेकिन, ये युवा खिलाड़ी किसी भी समय अकेले दम पर मैच अपने पाले में पलटने की क्षमता रखते है।
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एक फैन के नाते हम हर साल की तुलना में इस साल दिल्ली से ज्यादा उम्मीद लगाए हुए है और इसकी वजह कोई बड़े नाम वाले स्टार नहीं बल्कि पंत, शॉ, अय्यर, रबादा, संदीप, जैसे युवा खिलाड़ी है।