हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी द्वारा 'RSS'
की तुलना 'मुस्लिम ब्रदरहुड़' से करना उनकी वैचारिक दरिद्रता को दर्शाता हेै। ज्ञात हो कि माननीय राहुल गाँधी जी उस मुस्लिम
ब्रदरहुड़ की बात कर रहे है जिसकी स्थापना वर्ष 1928 में मिस्र में हुई थी और जो
अपनी आतंकी एवं हिंसक घटनाओ के चलते मिस्र, सउदी अरब, UAE, सीरिया आदि
देशों में प्रतिबन्धित है। वहीं दूसरी तरफ, RSS वह संगठन है
जिसकी विचारधारा में राष्ट्र और भारतीय संस्कृति सर्वोपरि है। यह वही RSS
संगठन है जो दूरदराज के आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल और अस्पताल भी चलाता है
और आवश्यकता पड़ने पर देश की उन्नति में भागीदारी को हमेंशा तत्पर भी रहता है। एक
तरफ कोई रक्तपात करे और दूसरी तरफ कोई सहायता के लिए हाथ दे, दोनो के अंतर को
राहुल गाँधी शायद अभी समझ नही पा रहे है या समझना ही नही चाहते है। हाल ही का
उदाहरण लें तो, केरल की त्रासदी में भारतीय सेना, NDRF, SDRF, और
स्थानीय पुलिस के अलावा अगर कोई संगठन है तो ये RSS की सेना ही
है जो सबकुछ भूलकर (सरेआम गौहत्या), वहां लगातार राहत कार्यो में जुटी है। जब स्वयं
राहुल जी के पूर्वज, जवाहर लाल नेहरु, इन्दिरा गाँधी और राजीव गाँधी समेत पूर्व राष्ट्रपति
प्रणब मुखर्जी तक RSS के राष्ट्रप्रेम की खुले मंच से प्रशंसा कर चुके
है तो, कौन से वो तर्क है जिनके आधार पर राहुल जी RSS को एक आतंकी
संगठन बता रहे है, ये तो स्वयं राहुल गाँधी ही बता सकते है। बावजूद इसके, यदि
राहुल गांधी अब भी RSS की विचारधारा को समझ नहीं पा रहे है तो मेरे
ख्याल से उन्हें RSS के आगामी कार्यक्रम के संभावित आमंत्रण को
स्वीकार करना चाहिए।
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